भारत में भिक्षावृत्ति अब केवल गरीबी की समस्या नहीं रह गई है। यह मानसिक बीमारी, शारीरिक अक्षमता, सामाजिक बहिष्कार, मानव तस्करी, बच्चों के शोषण और संगठित गिरोहों से जुड़ा एक जटिल सामाजिक संकट बन चुकी है। ऐसे में भिक्षावृत्ति को केवल कानून-व्यवस्था का विषय मानकर समाप्त नहीं किया जा सकता। आवश्यकता है एक ऐसे मानवीय और व्यावहारिक समाधान की, जो भिखारी को समस्या नहीं, बल्कि समाज की जिम्मेदारी माने।“जीवन संकल्प केंद्र” इसी दृष्टि से प्रस्तावित एक राष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य भिक्षावृत्ति को हटाना नहीं, बल्कि भिखारी को सम्मानपूर्वक जीवन की मुख्यधारा में लौटाना है।जीवन संकल्प केंद्र की मूल परिकल्पना
जीवन संकल्प केंद्र को केवल आश्रय गृह के रूप में नहीं, बल्कि एक समग्र पुनर्वास, उपचार, कौशल विकास, उत्पादन और रोजगार केंद्र के रूप में देखा जाना चाहिए। यह केंद्र ऐसे लोगों के लिए हो, जो वास्तव में सड़क पर जीवन बिता रहे हैं और भिक्षावृत्ति उनकी मजबूरी बन चुकी है।
इस परिकल्पना का मूल सिद्धांत यह है कि हर व्यक्ति काम करने में सक्षम न हो, तब भी वह गरिमा, सुरक्षा और सम्मान का अधिकारी अवश्य है।भिखारियों को केंद्र तक लाने की मानवीय व्यवस्था
यह सुझाव दिया जा सकता है कि जीवन संकल्प केंद्र तक भिखारियों को लाने की प्रक्रिया पूरी तरह मानवीय, संवाद-आधारित और भय-मुक्त हो। नगरों में मोबाइल रेस्क्यू वैन— “सहारा रथ” के माध्यम से रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल, धार्मिक स्थल और प्रमुख चौराहों पर मौजूद भिखारियों से संपर्क किया जाए। इनमें सामाजिक कार्यकर्ता, स्वास्थ्यकर्मी और पुलिस की सहयोगी भूमिका हो, ताकि भरोसा बने, डर नहीं।
जहाँ भिक्षावृत्ति संगठित गिरोहों द्वारा संचालित प्रतीत हो, वहाँ पुलिस और मानव तस्करी निरोधक इकाइयों के साथ विशेष रेस्क्यू अभियान चलाए जाएँ। वहीं, जो लोग स्वयं भीख छोड़ना चाहते हों, उनके लिए केंद्र में प्रवेश की प्रक्रिया सरल और सम्मानजनक रखी जाए।यह केंद्र केवल वास्तविक भिखारियों तक कैसे सीमित रहे
यह एक स्वाभाविक और आवश्यक शंका है कि कहीं बेरोजगार या काम से बचने वाले लोग भी इस योजना का दुरुपयोग न करने लगें। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि जीवन संकल्प केंद्र की पात्रता स्पष्ट रूप से परिभाषित हो।
यह सुझाव दिया जा सकता है कि केंद्र में प्रवेश स्व-पंजीकरण के आधार पर नहीं, बल्कि फील्ड सत्यापन के माध्यम से हो। नगर निगम, पुलिस बीट, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय NGO मिलकर उन्हीं व्यक्तियों को चिन्हित करें, जो सार्वजनिक स्थलों पर वास्तविक रूप से भिक्षावृत्ति करते या सड़क पर जीवन यापन करते पाए जाएँ।इसके अतिरिक्त, प्रत्येक नए व्यक्ति के लिए 7 से 15 दिन की अवलोकन अवधि रखी जाए, जिसमें यह देखा जाए कि वह वास्तव में सड़क जीवन से आया है और पुनर्वास के प्रति उसकी गंभीरता क्या है। सक्षम व्यक्तियों के लिए केंद्र के कार्य, प्रशिक्षण या उत्पादन गतिविधियों में भागीदारी अनिवार्य हो। इससे केवल सुविधाभोगी या आलसी प्रवृत्ति के लोग स्वतः बाहर हो जाएँगे।
प्रवेश, पहचान और मानसिक स्थिति का संवेदनशील आकलन
केंद्र में प्रवेश के बाद व्यक्ति की पहचान के साथ-साथ उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति का भी प्रारंभिक आकलन किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया पूछताछ नहीं, बल्कि सहानुभूति पर आधारित हो। कई भिखारी वर्षों से उपेक्षा, भय और असुरक्षा में जीते आए होते हैं, इसलिए प्रारंभिक अवधि में उन्हें केवल भोजन, विश्राम, चिकित्सा और काउंसलिंग दी जानी चाहिए।
यह चरण व्यक्ति में भरोसा और स्थिरता लाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।मानसिक बीमारी से ग्रस्त भिखारियों के लिए विशेष दृष्टिकोण
यह स्वीकार करना आवश्यक है कि बड़ी संख्या में भिखारी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं। अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी स्थितियाँ उन्हें सामान्य सामाजिक जीवन से बाहर कर देती हैं। इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि प्रत्येक जीवन संकल्प केंद्र में एक मानसिक स्वास्थ्य इकाई हो, जहाँ मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक नियमित उपचार और परामर्श प्रदान करें।
मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को तुरंत कौशल प्रशिक्षण में न डालकर पहले उपचार, दवा और स्थिरता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जहाँ संभव हो, परिवार की खोज कर उन्हें पुनः परिवार से जोड़ने का प्रयास भी किया जा सकता है। दीर्घकालिक रोगियों के लिए संरक्षित और सुरक्षित आवास केंद्र की स्थायी व्यवस्था का हिस्सा होना चाहिए।
वर्गीकरण आधारित पुनर्वास नीति
जीवन संकल्प केंद्र में भिखारियों का वर्गीकरण उनकी वास्तविक आवश्यकता के आधार पर किया जाना उपयुक्त होगा। वृद्ध और असहाय व्यक्तियों के लिए स्थायी आश्रय और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जुड़ाव आवश्यक है। दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सहायक उपकरण, उपयुक्त प्रशिक्षण और पेंशन व्यवस्था की जानी चाहिए।महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण, काउंसलिंग और स्वरोजगार के अवसर हों। बच्चों को किसी भी परिस्थिति में भीख या श्रम से दूर रखकर शिक्षा और संरक्षण की मुख्यधारा में लाना अनिवार्य हो।कौशल, उत्पादन और आत्मनिर्भरता की दिशा
सक्षम भिखारियों के लिए जीवन संकल्प केंद्र में चरणबद्ध कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था की जा सकती है। प्रशिक्षण के दौरान एक न्यूनतम प्रोत्साहन राशि देना व्यक्ति के आत्मसम्मान को बनाए रखने में सहायक होगा।
यह विशेष रूप से सुझाव योग्य है कि केंद्र को उत्पादन और बिक्री से जोड़ा जाए, ठीक उसी तरह जैसे खादी ग्राम उद्योग या अन्य सामाजिक उद्यम कार्य करते हैं।“जीवन संकल्प उत्पाद” : उत्पादन और बिक्री का मॉडल
जीवन संकल्प केंद्रों में अगरबत्ती, मोमबत्ती, जूट बैग, खादी या सूती वस्त्र, साबुन-डिटर्जेंट, मसाला पैकिंग, हस्तशिल्प जैसे उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। इनकी बिक्री के लिए “जीवन संकल्प स्टोर” स्थापित किए जाएँ—रेलवे स्टेशन, सरकारी भवन, तीर्थ स्थल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर।
हर उत्पाद पर यह संदेश अंकित हो—“इस उत्पाद की खरीद से एक जीवन को आत्मनिर्भर बनाता।”अनुशासन, निगरानी और पुनः भिक्षावृत्ति की रोकथाम
केंद्र में अनुशासन और पारदर्शिता की स्पष्ट व्यवस्था हो। यदि कोई व्यक्ति पुनर्वास के बाद जानबूझकर दोबारा भिक्षावृत्ति करता पाया जाए, तो पहले काउंसलिंग, फिर चेतावनी और अंततः कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाए। सामाजिक ऑडिट, CCTV और प्रशासनिक निगरानी से व्यवस्था की विश्वसनीयता बनी रहेगी।
समाज और नागरिक सहभागिता
समाज को यह समझना होगा कि सड़क पर दिया गया दान किसी व्यक्ति का भविष्य नहीं बदलता, लेकिन पुनर्वास में दिया गया सहयोग एक जीवन बदल सकता है। धार्मिक संस्थाएँ, उद्योग, CSR इकाइयाँ और नागरिक यदि सीधे जीवन संकल्प केंद्रों से जुड़ें, तो यह अभियान व्यापक जन-आंदोलन बन सकता है।संदेश स्पष्ट होना चाहिए—
“भिक्षा नहीं, पुनर्वास में सहयोग दें।”जीवन संकल्प केंद्र भिक्षावृत्ति को हटाने की नहीं, बल्कि जीवन को उठाने की परिकल्पना है। यह मॉडल सुनिश्चित करता है कि सहायता केवल उन्हीं तक पहुँचे जो वास्तव में लाचार हैं, और साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनने का वास्तविक अवसर भी मिले। यदि इसे नीति, संवेदना और अनुशासन—तीनों के संतुलन के साथ लागू किया जाए, तो भिखारी मुक्त भारत केवल नारा नहीं, बल्कि एक साकार सामाजिक परिवर्तन बन सकता है।
भिक्षा से श्रम,श्रम से उत्पादन,और उत्पादन से सम्मान—यही जीवन संकल्प केंद्र का सार है।

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