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3/22/16

या ईश्वर को छोड़ दो... या ईश्वर के ऊपर छोड़ दो....






एक प्रसिद्ध कैंसर स्पैश्लिस्ट था|


नाम था मार्क,


एक बार किसी सम्मेलन में


भाग लेने लिए किसी दूर के शहर जा रहे थे।


वहां उनको उनकी नई मैडिकल रिसर्च के महान कार्य  के लिए पुरुस्कृत किया जाना था।


वे बड़े उत्साहित थे,


व जल्दी से जल्दी वहां पहुंचना चाहते थे। उन्होंने इस शोध के लिए बहुत मेहनत की थी।




बड़ा उतावलापन था,


उनका उस पुरुस्कार को पाने के लिए।








जहाज उड़ने के लगभग दो घण्टे बाद उनके जहाज़ में तकनीकी खराबी आ गई,




जिसके कारण उनके हवाई जहाज को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।


डा. मार्क को लगा कि वे अपने सम्मेलन में सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे,





इसलिए उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों से रास्ता पता किया और एक टैक्सी कर ली, सम्मेलन वाले शहर जाने के लिए।


उनको पता था की अगली प्लाईट 10 घण्टे बाद है।


टैक्सी तो मिली लेकिन ड्राइवर के बिना इसलिए उन्होंने खुद ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया।




जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरु की कुछ देर बाद बहुत तेज, आंधी-तूफान शुरु हो गया।


रास्ता लगभग दिखना बंद सा हो गया। इस आपा-धापी में वे गलत रास्ते की ओर मुड़ गए।


लगभग दो घंटे भटकने के बाद उनको समझ आ गया कि वे रास्ता भटक गए हैं। थक तो वे गए ही थे,


भूख भी उन्हें बहुत ज़ोर से लग गई थी। उस सुनसान सड़क पर भोजन की तलाश में वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे।


कुछ दूरी पर उनको एक झोंपड़ी दिखी।





झोंपड़ी के बिल्कुल नजदीक उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी।


परेशान से होकर गाड़ी से उतरे और उस छोटे से घर का दरवाज़ा खटखटाया।




एक स्त्री ने दरवाज़ा खोला।


डा. मार्क ने उन्हें अपनी स्थिति बताई और एक फोन करने की इजाजत मांगी। उस स्त्री ने बताया कि उसके यहां फोन नहीं है।


फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अंदर आइए और चाय पीजिए।


मौसम थोड़ा ठीक हो जाने पर,


आगे चले जाना।








भूखे,


भीगे


और


थके हुए डाक्टर ने तुरंत हामी भर दी।





उस औरत ने उन्हें बिठाया,


बड़े सम्मान के साथ चाय दी व कुछ खाने को दिया।


साथ ही उसने कहा, "आइए, खाने से पहले भगवान से प्रार्थना करें


और उनका धन्यवाद कर दें।"





डाक्टर उस स्त्री की बात सुन कर मुस्कुरा दिेए और बोले,




"मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता।


मैं मेहनत पर विश्वास करता हूं।


आप अपनी प्रार्थना कर लें।"





टेबल से चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर उस स्त्री को देखने लगे जो अपने छोटे से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी।


उसने कई प्रकार की प्रार्थनाएं की। डाक्टर मार्क को लगा कि हो न हो,


इस स्त्री को कुछ समस्या है।




जैसे ही वह औरत


अपने पूजा के स्थान से उठी,


तो डाक्टर ने पूछा,




"आपको भगवान से क्या चाहिेए?


क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थनाएं सुनेंगे?"





उस औरत ने धीमे से उदासी भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा,




"ये मेरा लड़का है


और इसको कैंसर रोग है


जिसका इलाज डाक्टर मार्क नामक व्यक्ति के पास है


परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं


कि मैं उन तक,


उनके शहर जा सकूं


क्योंकि वे दूर किसी शहर में रहते हैं।




यह सच है की कि भगवान ने अभी तक मेरी किसी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया किंतु मुझे विश्वास है


कि भगवान एक न एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे।


वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे।


वे अवश्य ही मेरे बच्चे का इलाज डा. मार्क से करवा कर इसे स्वस्थ कर देंगे।





डाक्टर मार्क तो सन्न रह गए।


वे कुछ पल बोल ही नहीं पाए।


आंखों में आंसू लिए धीरे से बोले,


"भगवान बहुत महान हैं।"





(उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें सम्मेलन में जाना था।


कैसे उनके जहाज को इस अंजान शहर में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।


कैसे टैक्सी के लिए ड्राइवर नहीं मिला और वे तूफान की वजह से रास्ता भटक गए और यहां आ गए।)





वे समझ गए कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि भगवान को केवल इस औरत की प्रार्थना का उत्तर देना था




बल्कि भगवान उन्हें भी एक मौका देना चाहते थे


कि वे भौतिक जीवन में


धन कमाने,


प्रतिष्ठा कमाने, इत्यादि


से ऊपर उठें और असहाय लोगों की सहायता करें।


    


वे समझ गए की भगवान चाहते हैं


कि मैं उन लोगों का इलाज करूं जिनके पास धन तो नहीं है


किंतु जिन्हें भगवान पर विश्वास है।


         




हर इंसान को ये ग़लतफहमी होती है


की जो हो रहा है,


उस पर उसका कण्ट्रोल है


और वह इन्सान ही


सब कुछ कर रहा है ।




पर अचानक ही कोई


अनजानी ताकत सबकुछ बदल देती है


कुछ ही सेकण्ड्स लगते हैं


सबकुछ बदल जाने में


फिर हम याद करते हैं


परमपिता परमात्मा  को।









या ईश्वर को छोड़ दो...


             या ईश्वर के ऊपर छोड़ दो....



2/18/16

बहुत सरल है भगवान् का दोस्त बनना....

एक बच्चा गला देनेवाली सर्दी में नंगे पैर प्लास्टिक के तिरंगे बेच रहा था,

लोग उसमे भी मोलभाव कर रहे थे।

एक सज्जन को उसके पैर देखकर बहुत दुःख हुआ, सज्जन ने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा

"बेटा लो, ये जूता पहन लो".

लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए,

उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था. वो उस सज्जन की तरफ़ पल्टा और हाथ थाम कर पूछा

"आप भगवान हैं ?

उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर कहा

"नहीं बेटा, नहीं. मैं भगवान नहीं"

लड़का फिर मुस्कराया और कहा

"तो फिर ज़रूर भगवान के दोस्त होंगे,

क्योंकि मैंने कल रात भगवान से कहा था कि मुझे नऐ जूते देदें,"

वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा.


अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त होना कोई मुश्किल काम नहीं....


Source - Facebook


1/25/16

कोई_अपना_सा.....


बाजार से घर लौटते वक्त कुछ खाने का मन

किया तो,

वह रास्ते में खड़े ठेले वाले के पास भेलपूरी

लेने के लिए रूक गयी।..

उसे अकेली खड़ी देख, पास ही बनी पान की

दुकान पर खड़े कुछ मनचले भी वहाँ आ

गये।...

घूरती आँखे लड़की को असहज कर रही थी,

पर वह ठेले वाले को पहले पैसे देचुकी थी,

इसलिए मन कड़ा करके खड़ी रही।

द्विअर्थी गानों के बोल के साथ साथ आँखो में

लगी अदृश्य दूरबीन से सब लड़के उसकी

शारीरीक सरंचना का निरिक्षण कर रहे थे।...

उकताकर वह कभी दुपट्टे को सही करती तो

कभी ठेले वाले से और जल्दी करने को कहती।


मनचलों की जुगलबंदी चल ही रही थी कि

कबाब में हड्डी की तरह एक बाईक सवार

युवक वँहा आकर रूका।..

"अरे पूनम...तू यहाँ क्या कर रही है ? हम्म..!

अपने भाई से छुपकर पेट पूजा हो रही है।"

बाईक सवार युवक ने लड़की से कहा।..

संभावित खतरे को भाँपकर मनचले तुरंत इधर

उधर खिसक लिये।..

समस्या से मिले अनपेक्षित समाधान से

लड़की ने राहत की साँस ली


फिर असमंजस भरे भाव के साथ युवक से कहा

" माफ किजिए, मेरा नाम एकता है। आपको

शायद गलतफहमी हुई है, मैं आपकी बहन नही

हूँ।"

.."मैं जानता हूँ...! मगर किसी की तो बहन हो.."

कहकर युवक ने मुस्कुराते हुए हेलमेट पहना

ओर अपने रास्ते चल दिया।


दोस्तों हर कोई तो नही सुधर सकता इसलिये

बस इतना ही कहना है की खुद को उस बाइक

वाले व्यक्ति की तरह बनाओ ना की पान वालो

की तरह 

अगर पसन्द आई हो तो शेयर करना ना

भूले क्या पता किसी की सोच बदल जाएँ।


Source - Facebook


1/15/16

एक चुटकी ज़हर रोजाना

आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।

आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।

दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी.

एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।

आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”

बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”

लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….

अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”

कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”

“क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा.

पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।

कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”

पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।

यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”

आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.

ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।

साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।

रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।

सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।

#राजेशकान्धवे

कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।

धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।

किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।

बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।

छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।

जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।

इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !

वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”

पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”

"बेटी को सही रास्ता दिखाये,

माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे"


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1/14/16

पिता और पुत्र

जब मैं 3 वर्ष का था तब मैं यह सोचता था की
मेरे पिता दुनिया के सबसे मजबूत और
ताकतवर इंसान हैं ।
जब मैं 6 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया
की मेरे पिता दुनिया के सबसे ताकतवर ही नहीं
सबसे समझदार इंसान भी हैं ।
जब मैं 9 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस